मौन
तू मौन रह तू मौन रह , तू मौन रह तू मौन रह ... मौन का ये अर्थ है कि शब्द सारे व्यर्थ हैं , वेद सारे लील जाए , मौन यूँ समर्थ है। चीख़ चीख़ शब्द उड़ें , शांत स्मित मौन है , मौन की ही मार से शब्द सब स्तब्ध हैं। शब्द सीमित हैं मगर , मौन तो विस्तार है , श्रम ही श्रम है शब्द में , मौन में विश्राम है। मौन में ही शक्ति है , मौन में ही भक्ति है , ध्यान में भी मौन है , मौन में विरक्ति है। प्रेम और करुणा के भाव सारे मौन हैं , शांत रह तू मौन रह , शोर में आसक्ति है। क्रोध में तो शोर है , विध्वंस में भी शोर है , मन के विष में शोर है , तृष्णा में भी शोर है , लालसा में शोर - शोर , वासना में शोर है , डमरू डोले शिव का तो तांडव में शोर है , खुल गया त्रिनेत्र तो संहार में भी शोर है। गूढ़ जितने तत्व हैं , सब के सब वो मौन हैं , चीखता है दर्