डिप्रेशन - एक व्यंग
“अजी सुनते हो तिलकुट के पापा...,” मैं आप लोगों को सच बता रहा हूँ कि ये आवाज़ सुनते ही मैं लगभग डिप्रेशन में चला जाता हूँ। नहीं नहीं, मेरा मतलब है समस्या आवाज़ की नहीं है, आपने गलत समझा, समस्या मूलतः दो वजहों से है। एक तो इनकी अंग्रेजी इतनी फर्राटेदार है कि सुनते ही लगेगा आपको किसी ने झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया हो; और दूसरी...आपने अगर ध्यान दिया हो तो देख ही रहे हैं अपने इकलौते बेटे के नाम के साथ इन्होंने क्या तबाही मचा रखी है। लेकिन इसमे भी गलती इनकी नहीं है। ये सबकुछ इनके ज्योतिषी पिता का रचा हुआ कर्मकांड है और, झूठ नहीं बोलूँगा, कुछ बेवकूफी मेरी भी है जिसकी सज़ा तो आप देख ही रहे हैं मैं भुगत रहा हूँ। वास्तव में हुआ कुछ यूँ कि जब इस (अरे भाई मैं) बकरे को हलाल करने का समय आया तो इनके कर्मकांडी बाप ने लड़की डायरेक्ट दिखाने से मना कर दिया और परदे के पीछे से बस इनकी एक झलक दिखा दी और कहा, “बिटिया हमारी सुन्दर है और फर्राटेदार अंग्रेजी बोल सकती है बबुआ, और क्या चाहिए, सुखी रहोगे, हम कुंडली-फुन्डली सब मिला लिए हैं, सारे के सारे ३२ गुण मिलते हैं।” पता नहीं ३२ बोला कि ३६, कुछ याद नहीं, पर बात तो बु