मौन

 

तू मौन रह तू मौन रहतू मौन रह तू मौन रह...


मौन का ये अर्थ है कि शब्द सारे व्यर्थ हैं,

वेद सारे लील जाएमौन यूँ समर्थ है।

चीख़ चीख़ शब्द उड़ेंशांत स्मित मौन है,

मौन की ही मार से शब्द सब स्तब्ध हैं।

शब्द सीमित हैं मगरमौन तो विस्तार है,

श्रम ही श्रम है शब्द मेंमौन में विश्राम है।

मौन में ही शक्ति हैमौन में ही भक्ति है,

ध्यान में भी मौन हैमौन में विरक्ति है।

प्रेम और करुणा के भाव सारे मौन हैं,

शांत रह तू मौन रहशोर में आसक्ति है।


क्रोध में तो शोर हैविध्वंस में भी शोर है,

मन के विष में शोर हैतृष्णा में भी शोर है,

लालसा में शोर-शोरवासना में शोर है,

डमरू डोले शिव का तो तांडव में शोर है,

खुल गया त्रिनेत्र तो संहार में भी शोर है।

गूढ़ जितने तत्व हैंसब के सब वो मौन हैं,

चीखता है दर्प हीविनय तो बस मौन है,

चीख़ है बलात् हठ मेंसमर्पण तो मौन है,

झूठ के हैं लाखों शब्दसत्य शाश्वत मौन है,

शोर से निकल के रहतू मौन रह तू मौन रह।


सूर्य चन्द्र मौन हैंआकाश सारा मौन है,

धैर्य जो धारण करे यह धरा भी मौन है।

शब्द क्या पढ़ेजो मौन ही ना पढ़ सका,

पार्थ हो या बुद्ध होंज्ञान मौन में खिला,

मौन में ही प्रश्न थामौन में उत्तर मिला।

मौन रह के हिम गलामौन ही गंगा बही,

ज्ञान कृष्ण का लियेमौन ही गीता चली।

मंदिर-मस्जिद शोरशोर अर्चना-अज़ान हैं,

पथ दिखाती प्रेम का लौ दीये की मौन है,

मन की वीणा से झरे संगीत सारे मौन हैं।


मंजिलें तो शांत मौनरास्ते भी मौन हैं,

क़िस्से हज़ार मगरकहने वाला मौन है।

मौन मील की शिलाजो  पूछे क्यों चला,

मौन धूल का वो फूलजो  जाने क्यों खिला,

दुख ना कर क्या गयासुख ना कर क्या मिला।

हाँप्रश्न हैं डगर डगरलड़ना है समर समर,

मौन रह प्रहार सहमौन ही प्रतिकार कर,

भूल जा अगर मगरसोच तुझको क्या है डर?

यात्रा ये मौन की हैअंत जिसका मौन है,

तू पथिक है चलता रहमौन निर्झर सा तू बह।


तू मौन रह तू मौन रहतू मौन रह तू मौन रह...

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