ये मेरा शहर
जब से छूटा है मुझसे ये मेरा शहर,
बदले-बदले से हैं इसके शामों-सहर,
आशिक़ी थी पत्थरों से भी यहाँ के,
भूले-भूले से हैं अब वो रास्ते वो दर,
काश कोई टकरा जाए अपना सा,
यूँ ही अचानक भीड़ से निकलकर,
कैसे समझाऊँ इस दिल को मगर,
अब रहता नहीं वो शख़्स यहाँ पर ,
जो कभी जान देता था मेरे बग़ैर।
वो सड़कें, सर्कस, वो मीना-बाज़ार,
वो बाग़ीचे, गलियाँ, वो दरो-दीवार,
वो टूटी सी पुलिया, वो क़िस्से हज़ार,
वो धूँए के छल्लों में उड़ता ख़ुमार,
वो आँगन में गिरती सर्दी की धूप,
वो गर्मी की रातें, वो तपती सी लू,
वो बारिश की बूँदें, वो मिट्टी की बू,
वो बदलते मौसम, वो गुज़रती उमर,
अजीब है ये मेरे अहसासों का शहर।
बचपन की नादानियों से लेकर,
भीगती मसों की दीवानगियों तक,
अनचाही आवारगियों से लेकर,
झूठे इश्क़ की बर्बादियों तक,
रेंगते वक़्त के बहानों से लेकर,
परिंदे होते उम्र के परवाज़ों तक,
सबका गवाह है ये चुप सा शहर,
कभी दोस्त हुआ करता था मेरा,
अब कुछ रूठा रूठा सा है ये मगर।
कोई ज़िद है जो अक्सर मचलकर,
नन्हे बच्चे सी पैरों से लिपटकर,
अज़ीब सी कशिश आँखों में भरकर,
चाहता है मैं जान दे दूँ यहीं पर,
ये वादा है तुझसे ऐ मेरे शहर,
जहाज़ के पंछी सा थक हार कर,
लौट आऊँगा मैं भी किसी दिन,
तेरी गोद में जान देने यहीं पर,
बस मेरा इंतज़ार करना ऐ मेरे शहर।
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