शिकायतें

 


ठहरा दिया जमाने ने कातिल मुझको,

कोई देखता मुझको नज़र से मेरी भी।”


क़त्ल हो जाते हैं लोग एक हँसी पे तेरी,

काश कोई देख पाता उदासी मेरी भी।


टूटी होंगी ज़रूर ढेरों ख्वाहिशें तेरी भी 

काश कोई देखता टूटी उम्मीदें मेरी भी 


सारी जायज़ हैं शिकायतें तेरी, माना,

एक उलाहने पे कोई गौर करता मेरी भी।


तेरे आँखों के आँसू देखे हैं दुनिया ने,

काश एक पीड़ा कोई देखता मेरी भी।


नग्में नहीं तेरी जिंदगी में कोई, माना,

सन्नाटे लफ़्ज़ों की कोई सुनता मेरी भी।


कोई शिकवा ना करेंगे अब तुझसे यारा, 

पर आंखों की खामोशी तो देख मेरी भी।

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